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legent sant kanwar ram singh

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Sant kanwar Ram 1 नवम्बर 1939 का दिन मानवता के इतिहास में अति कलंकित और दुखदाई रहा। मांझादन के दरबार में भाई गोविंद रामजी के वर्सी महोत्सव में भजन के पश्चात दादू नगर में किसी बालक के नामकरण अवसर पर पहुंचे। भजन के पश्चात भोजन करने के समय उनके हाथ से कौर छूट गया। संत मन ही मन प्रभु की माया को समझते हुए उनकी कृपा का स्मरण करते रहे और उन्होंने समक्ष रखी भोजन की थाली एक ओर कर दी। अपनी भजन मण्डली के साथ्‍ा संत कंवर रामजी गाड़ी बदलने की दृष्टि से रात्रि 10 बजे 'रूक' जंक्शन स्टेशन पर पहुंचे। दो बंदूकधारियों ने आकर उन्हें प्रणाम किया और अपने कार्य सिद्धि के लिए संतजी से दुआ मांगी। त्रिकालदर्शी संत कंवर राम साहिब ने उन्हें प्रसाद में अंगूर देते हुए, उनसे कहा कि अपने पीर मुर्शिद को याद करो। उनमें विश्वास रखो, कार्य अवश्य पूरा होगा। संतजी रेल के डिब्बे में प्लेट फार्म की दूसरी ओर वाली सीट पर खिड़की से सट कर बैठ गए और अपनी मण्डली के एक साथी से अखबार जोर-जोर से पढ़कर सुनाने को कहा। उन्होंने अपने अंगरक्षकों की बंदूकें ऊपर की सीट पर रखवा दीं। अंधेरी रात में, गाड़ी क