jaipur contribution in ramayan writing
रीवा के तत्कालीन राजा रघुवीर सिंह की दो सौ साल पहले लिखी भक्त माल की टीका में लिखे दोहे से ज्ञात होता है गलता की परिचय पुस्तक में भी लिखा गया है कि तुलसीदास जी तीन वर्ष तक गलता में निवास किया।
जिन यह भक्त माल निर्माणी
ते सब संतन न्योता दिन्यो
शीघ्र संत प्यानो किन्हो
तुलसी दास के न्योतो आयो
ताहि विचार मन में अलसायो
पंगत में कच्चो पकवाना
द्विज को कहबो उचित न जाना
यह विचार कर तह तहु न गयो
पवन सुत तांसो कह देयो
भक्त राज नाभा को जानो
तुरत ही नह तंह को करो प्यानो
हनुमत शासन सुनत गुसाई
चले तंहा भिक्षुक की नाईं "
की तुलसी दास जी गलत तीर्थ आये थे उन्होंने महान संत कृष्णदास पयोहारी के शिष्य अग्रदास के दीक्षा संस्कार महोत्सव में देशभर से अनेक संत महंत ऋषि गालव की तपो स्थली गलता तीर्थ आए थे। अग्रस्वामी चरितम में रुप कला और भक्त माल की टीका में प्रिया दास ने तुलसी दास के गलता और रैवासा में आने का उल्लेख किया है।संस्कृत विद्वान डॉ. सुभाष शर्मा के मुताबिक आमेर के तत्कालीन नरेश पृथ्वीराज के समय पयोहारी के दो शिष्यों में एक किल्ह दास गलता में रहे। दूसरे शिष्य अग्रदास ने रैवासा में पीठ स्थापित की।
आमेर नरेश मान सिंह प्रथम की तुलसी दास से मित्रता थी। उन्होंने युवराज जगत सिंह को तुलसी दास से शिक्षा दिलवाई। मान सिंह रैवासा भी गए थे।
रामचरितमानस के अयोध्या कांड की रचना जयपुर के गलता में हुई है
संत नाभा दास का कहना है कि तुलसी दास भक्त माल का सुमेरू है। रामचरितमानस के अयोध्या कांड की रचना करने के समय वे जानकीनाथ मंदिर में रहे थे। इसलिए ही लिखा भी गया है जानकी नाथ सहाय करें तब कौन बिगाड़ करे नर तेरो। अयोध्या कांड से कुछ पद भी रेवासा में लिए गए हैं।
जयपुर नरेश विद्वान और ज्ञानी जानो का सम्मान किया करते थे भारत के इतिहास में आधे किले और मंदिरों का निर्माण के पीछे राजस्थान वालो की सोच और धन लगा हुआ है किन्तु सरकारी उदासीनता और अफसरशाही के कारण राजस्थान की संस्कृति और कल्चर का प्रचार प्रसार नही हो पा रहा है
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