भगवान झूलेलाल जयंती।
भारत में विभिन्न धर्मों, समुदायों और जातियों का समावेश है। इसलिए यहाँ अनेकता में एकता के दर्शन होते हैं। यह हमारे देश के लिए गर्व की बात है कि यहाँ सभी धर्मों के त्योहारों को प्रमुखता से मनाया जाता है चाहे वह दीपावली हो, ईद हो, क्रिसमस हो या भगवान झूलेलाल जयंती।
सिंधी समुदाय का त्योहार भगवान झूलेलाल का जन्मोत्सव 'चेटीचंड' के रूप में पूरे देश में हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
इस त्योहार से जुड़ी हुई वैसे तो कई किवंदतियाँ हैं
परंतु प्रमुख यह है कि
चूँकि सिंधी समुदाय व्यापारिक वर्ग रहा है सो ये व्यापार के लिए जब जलमार्ग से गुजरते थे
तो कई विपदाओं का सामना करना पड़ता था।
जैसे समुद्री तूफान, जीव-जंतु, चट्टानें व समुद्री दस्यु गिरोह जो लूटपाट मचाकर व्यापारियों का सारा माल लूट लेते थे।
इसलिए इनके यात्रा के लिए जाते समय ही महिलाएँ वरुण देवता की स्तुति
करती थीं व तरह-तरह की मन्नते माँगती थीं। चूँकि भगवान झूलेलाल जल के देवता हैं
अतः ये सिंधी लोग के आराध्य देव माने जाते हैं। जब पुरुष वर्ग सकुशल लौट आता था।
तब चेटीचंड को उत्सव के रूप में मनाया जाता था।
मन्नतें पूरी की जाती थी व भंडारा किया जाता था।
पार्टीशन के बाद जब सिंधी समुदाय भारत में आया तब सभी तितर-बितर हो गए।
तब सन् 1952 में प्रोफेसर राम पंजवानी ने सिंधी लोगों को एकजुट करने के लिए अथक प्रयास किए।
वे हर उस जगह गए जहाँ सिंधी लोग रह रहे थे।
उनके प्रयास से दोबारा भगवान झूलेलाल का पर्व धूमधाम से मनाया जाने लगा जिसके लिए पूरा समुदाय उनका
आभारी है।
भगवान झूलेलाल जी ने धर्म की रक्षा के लिए कई साहसिक कार्य किए
जिसके लिए इनकी मान्यता इतनी ऊँचाई हासिल कर पाई।
आज भी समुद्र के किनारे रहने वाले जल के देवता भगवान झूलेलाल जी को मानते हैं। इन्हें अमरलाल व उडेरोलाला भी नाम दिया गया है।
वर्ष में एक बार सतत चालीस दिन इनकी अर्चना की जाती है
जिसे 'लाल साईं जो चाली हो' कहते हैं।
लाल साईं जा पंजिड़ा
जिन मंत्रों से इनका आह्वान किया जाता है उन्हें लाल साईं जा पंजिड़ा कहते हैं।
इन्हें ज्योतिस्वरूप माना जाता है
अतः झूलेलाल मंदिर में अखंड ज्योति जलती रहती है,
शताब्दियों से यह सिलसिला चला आ रहा है।
ज्योति जलती रहे इसकी जिम्मेदारी पुजारी को सौंप दी जाती है।
संपूर्ण सिंधी समुदाय इन दिनों आस्था व भक्ति भावना के रस में डूब जाता है।
आज भी जब कोई सिंधी परिवार घर में उत्सव आयोजित करता है
तो सबसे पहले यही गूँज उठती है।
अखिल भारतीय सिंधी बोली और साहित्य ने इस दिन 'सिंधीयत डे' घोषित किया है।
'आयोलाल झूलेलाल' बेड़ा ही पार अर्थात इनके नाम का जयघोष करने से ही सब मुश्किलों से पार हो जाएँगे।
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